बिल्लेसुर बकरिहा–(भाग 40)

खुश होकर त्रिलोचन ने कहा, "ऐसी औरत गाँव में आई नहीं–– सोलह साल की, आगभभूका।"


बिल्लेसुर को देवियों की याद आ गई थी, इसलिये बिचलित होकर सँभल गये।

 कहा, "तुम्हारी आँख कभी धोखा खा सकती है? कहाँ की है?"

"यह तो न बतायेंगे, जब ब्याहन चलोगे, तभी मालूम करोगे।"

"पहले तो फलदान चढ़ेंगे, या इसकी भी ज़रूरत नहीं?"

"फलदान चढ़ेंगे, लेकिन कोई पूछ-ताछ न होगी, तिवारियों के यहाँ की लड़की है। सब काम हमारी मारफ़त होगा।"

"किस गाँव की है?"

"इतना बता दिया तो क्या रह जायगा? यह ब्याह से पहले मालूम हो ही जायगा। मगर एक बात है। 

उनके यहाँ ब्याह का खर्च नहीं। भलेमानस हैं। लड़की नहीं बेचेंगे, पर ख़र्च तुम्हे दना होगा।"

"कितना?"

त्रिलोचन हिसाब लगाने लगे, खुलकर कहते हुए, "तुम्हारे यहाँ फलदान चढ़ाने आयेंगे तो ठहरेंगे हमारे यहाँ। थाल में सात रुपये रक्खेंगे और नारियल के साथ एक थान। 

इसमें बीस रुपये का ख़र्च है। यह तुम्हें फलदान के दिन से सात रोज़ पहले दे देना होगा। फिर फलदान चढ़ जाने पर डेढ़-सौ रुपए विवाह के ख़र्च के लिए उसी दिन देना पड़ेगा, सब हमारी मारफ़त। 

भले आदमी हैं, नहीं निबाह सकते। तुमसे हाथ फैलाकर लें, तो कैसे? द्वार के चार से, ब्याह, भात और बड़ाहार, बरतौनी तक डेढ़ सौ, दाल में नमक के बराबर भी नहीं।

 लेकिन तुम्हें भी तो नहीं उजाड़ सकते? कुल में तुम से बड़े।"

बिल्लेसुर ने कहा, "कुल में बड़े हैं तो ब्याह फलेगा नहीं। मन्नु बाजपेयी ने, रुपये न होने से, उतरकर ब्याह किया, लड़की बेवा हो गई। भय्या, मुझे तो यही बड़ा डर है कि कहीं......"

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